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| Hier findest du auch den vollen [[Shri Rudram Sanskrit Text]] | | Hier findest du auch den vollen [[Shri Rudram Sanskrit Text]] |
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| ==Übersetzung des Shri Rudram==
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| Das [[Shri]] Rudram erscheint in verschiedenen Teilen der Veden, der Inhalt variiert leicht.
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| Diese Übersetzung entstammt dem [[Krishna Yajurveda]] der [[Taittiriya Samhita]].
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| Basis ist die englische Fassung von [[Swami Dayananda]] Saraswati, [[Arsha Vidya Ashram]], Indien.
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| Shri Rudram hat 11 [[Anuvaka]]s, also 11 Kapitel.
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| ===Erstes Anuvaka des Shri Rudram===
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| Om, Ehre sei Dir, Erhabener, [[Rudra]]
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| Verehrung sei Dir dargebracht, Deinem Zorn, Deinem Pfeil.
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| Verehrung ebenso Deinem Bogen und Deinen beiden Händen.
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| Nachdem Dein Pfeil, Dein Bogen und Dein Köcher zur [[Ruhe]] gekommen sind lasse sie uns wohlwollend sein.
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| Herr, Du bist das Wort der Veden. Offenbare Dich unserem Selbst durch Dein friedvolles, glückverheißendes [[Sein]].
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| Herr, Du bist das Wort der Veden, lasse den Pfeil in Deiner Hand uns zum Segen werden. Verletze keines Deiner Geschöpfe.
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| Herr der Veden, reinen [[Herz]]ens beten wir zu Dir. Lasse Deine Geschöpfe frei von [[Krankheit]] sein und gib allen ein friedvolles [[Gemüt]].
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| Höchster Herr, nimm Dich Deiner Geschöpfe an. Gib ihnen Befreiung aus dem Kreislauf der Geburten. Schütze sie vor dämonischen Kräften.
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| Der Herr ist die Sonne, dunkelrot, wenn Sie sich erhebt, dann hellrot, golden werdend. Durch unsere Gebete befrieden wir den Zorn tausender von Rudras die sich im Universum angesiedelt haben.
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| Herr, Dein Hals ist blau wie der Himmel über den Du Dich bewegst. Dich sehen die Kuhhirten ebenso wie die Frauen die [[Wasser]] holen. Alle Wesen sehen Rudra. Möge dieser Herr uns glücklich machen.
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| Ehre dem Herrn, Dessen Hals blau ist.
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| Ehre ebenfalls Seinen Heerscharen. Vor den unzähligen Augen des Herrn finden wir Gnade.
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| Herr, gib die Sehne Deines Bogens an beiden Enden frei. Die Pfeile in Deinen Händen halte von uns fern.
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| Herr, Du hast unzählige Augen. Du hast viele Köcher. Binde die Sehne des Bogens los und mache die Pfeile stumpf. Zeige Dich uns in Deiner glückverheißenden [[Form]] und gib uns Deinen Segen.
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| Herr mit dem verfilzten Haar, möge Dein Bogen der Sehne beraubt sein. Möge der Köcher frei von Pfeilen sein. Mögen die Pfeile vernichtet werden und die Scheide die Kraft verlieren das Schwert zu halten.
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| Herr unseres Verlangens, mögest Du uns mit Deinen Waffen vor Schwierigkeiten und Krankheiten schützen.
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| Herr, Ehre sei Deinen Waffen, die die Kraft haben uns zu verletzen, nun aber zur Ruhe gekommen sind. Ehre sei Deinen Händen und dem Bogen darin.
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| Herr, lasse Deine Pfeile uns verfehlen. Richte sie gegen unsere inneren Feinde.
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| Ehre sei dem Herrn des Universums, dem Alldurchdringenden, dem Dreiäugigen, dem Vernichter der drei Stätten der Verblendung, dem Kenner der drei Zeiten, dem zeitlosen Vernichter der Zeit, dem, dessen Hals blau ist, dem Besieger des Todes, dem höchsten Herrn,
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| dem ewig Gnädigen, dem Allmächtigen.
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| Ehre sei dem Herrn.
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| ===Zweites Anuvaka des Shri Rudram===
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| Ehre sei [[Gott]]
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| Er erstrahlt wie [[Gold]]
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| Er ist der Herr der Himmlischen Heerscharen
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| Er ist der Herr der vier HimmelShrichtungen
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| Diesem Herrn bringen wir unsere Verehrung dar
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| Ehre sei dem Herrn
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| Er ist das frische Grün in den Blättern der Bäume
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| Er gebietet über alle Wesen
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| Diesem Herrn bringen wir unsere Verehrung dar
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| Ehre sei dem Herrn
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| Er ist das frische Grün im Gras
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| Er leuchtet über allem
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| Er kennt die Wege aller Seelen
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| Diesem Herrn bringen wir unsere Verehrung dar
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| Ehre sei dem Herrn
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| Er reitet den Bullen
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| Er ist die Ursache für Hunger und Durst
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| Er ist der Herr der [[Nahrung]]
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| Diesem Herrn bringen wir unsere [[Verehrung]] dar
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| Ehre sei dem Herrn
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| Er hat grüne Haare
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| Er trägt die Heilige Schnur
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| Er wacht über das Gedeihen
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| Diesem Herrn bringen wir unsere Verehrung dar
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| Ehre sei dem Herrn
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| Er führt uns aus dem Kreislauf der Geburten
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| Er ist der Herr des Universums
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| Diesem Herrn bringen wir unsere Verehrung dar
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| Ehre sei dem Herrn
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| Er tilgt das [[Leid]] der [[Wiedergeburt]]
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| Er ist jederzeit bereit uns mit Seinem Bogen zu beschützen
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| Er ist der Herr aller [[Körper]]
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| Diesem Herrn bringen wir unsere Verehrung dar
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| Ehre sei dem Herrn
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| Er ist der Herr der unveränderlichen kosmischen Ordnung
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| Er ist der Herr der Wälder
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| Diesem Herrn bringen wir unsere Verehrung dar
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| Ehre sei dem Herrn
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| Er erscheint rötlich im Seinem kosmischen Spiel
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| Er beschützt uns durch Seine [[Allgegenwart]]
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| Er ist der Herr der Bäume
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| Diesem Herrn bringen wir unsere Verehrung dar
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| Ehre sei dem Herrn
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| Er offenbart sich in den Worten der Veden
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| Er ist der Herr aller geheimen Regionen
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| Diesem Herrn bringen wir unsere Verehrung dar
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| Ehre sei dem Herrn
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| Er ist der Urgrund allen Seins
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| Er wohnt in unseren Herzen
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| Er ist der Herr der Kräuter
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| Diesem Herrn bringen wir unsere Verehrung dar
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| Ehre sei dem Herrn
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| Er ist der Herr der frenetischen [[Anrufung]]en
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| Er vernichtet unsere schlechten Eigenschaften
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| Er ist der Herr der Fußsoldaten
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| Diesem Herrn bringen wir unsere Verehrung dar
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| Ehre sei dem Herrn
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| Er durchdringt das Universum
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| Er eilt uns stets zu Hilfe
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| Er beschützt alle die reinen Herzens sind
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| Diesem Herrn bringen wir unsere Verehrung dar
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| ===Drittes Anuvaka des Shri Rudram===
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| Ehre sei dem Herrn
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| Er ist der Allverzeihende
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| Er sucht unsere Feinde heim
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| Er ist der Herr der zornvollen Gottheiten
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| Diesem Herrn bringen wir unsere Verehrung dar
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| Ehre sei dem Herrn
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| Er ist der Gott der [[Götter]]
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| Er führt das Schwert
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| Er ist der Herr der Diebe
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| Diesem Herrn bringen wir unsere Verehrung dar
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| Ehre sei dem Herrn
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| Er hat Seine Pfeile immer schussbereit
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| Er hat einen Köcher voll mit Pfeilen
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| Er ist der Herr der Räuber
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| Diesem Herrn bringen wir unsere Verehrung dar
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| Ehre sei dem Herrn
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| Er ist ein Gelegenheitsbetrüger
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| Er ist ein gewohnheitsmäßiger Betrüger
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| Er ist der Herr der Betrüger
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| Diesem Herrn bringen wir unsere Verehrung dar
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| Ehre sei dem Herrn
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| Er treibt sich im Wald herum
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| Er ist ständig auf der Suche nach Diebesgut
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| Er ist der Herr der Wegelagerer
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| Diesem Herrn bringen wir unsere Verehrung dar
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| Ehre sei dem Herrn
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| Er ist der Herr derer, die sich selbst mit Waffen schützen um Wehrlose zu töten
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| Er ist der Herr derer die Getreide stehlen
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| Diesem Herrn bringen wir unsere Verehrung dar
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| Ehre sei dem Herrn
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| Er ist der Herr derer die eine Waffe tragen
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| Er ist der Herr derer die nachts rauben und töten
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| Diesem Herrn bringen wir unsere Verehrung dar
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| Ehre sei dem Herrn
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| Er trägt einen Turban
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| Er streunt durch die [[Berg]]e
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| Er ist der Herr derer die anderer Leute Land besetzen
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| Diesem Herrn bringen wir unsere Verehrung dar
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| Ehre sei Dir, Herr
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| Du wohnst inne denen die Pfeile tragen und denen die den Bogen tragen
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| Dir bringen wir unsere Verehrung dar
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| Ehre sei Dir, Herr
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| Du wohnst inne denen die den Bogen bauen und denen die den Pfeil anlegen
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| Dir bringen wir unsere Verehrung dar
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| Ehre sei Dir, Herr
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| Du wohnst inne denen die den Bogen spannen und denen die den Pfeil abschießen
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| Dir bringen wir unsere Verehrung dar
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| Ehre sei Dir, Herr
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| Du wohnst inne denen die auf das Opfer schießen und denen die es durchstechen
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| Dir bringen wir unsere Verehrung dar
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| Ehre sei Dir, Herr
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| Du wohnst inne denen die sitzen und denen die liegen
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| Dir bringen wir unsere Verehrung dar
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| Ehre sei Dir, Herr
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| Du wohnst inne denen die schlafen und denen die wach sind
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| Dir bringen wir unsere Verehrung dar
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| Ehre sei Dir, Herr
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| Du wohnst inne denen die stehen und denen die laufen
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| Dir bringen wir unsere Verehrung dar
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| Ehre sei Dir, Herr
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| Du wohnst inne den Versammlungen und denen, die die Versammlungen leiten
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| Dir bringen wir unsere Verehrung dar
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| Ehre sei Dir, Herr
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| Du wohnst inne den Pferden und den Reitern
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| Dir bringen wir unsere Verehrung dar
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| ===Viertes Anuvaka des Shri Rudram===
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| Ehre sei Dir, Herr
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| Du bist die feminine Kraft die sich zornvoll manifestiert und die feminine Kraft die sich mannigfaltig manifestiert
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| Dir bringen wir unsere Verehrung dar
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| Ehre sei Dir, Herr
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| Du erscheinst als die sieben friedvollen [[Göttin]]nen und als die zornvollen Göttinnen
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| Dir bringen wir unsere Verehrung dar
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| Ehre sei Dir, Herr
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| Du wohnst inne den Habsüchtigen und Du bist ihr Herr
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| Dir bringen wir unsere Verehrung dar
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| Ehre sei Dir, Herr
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| Du wohnst inne allen Menschen der verschiedenen Gesellschaftsordnungen und Du bist ihr Herr
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| Dir bringen wir unsere Verehrung dar
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| Ehre sei Dir, Herr
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| Du wohnst inne den Himmlischen Heerscharen und Du bist ihr Herr
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| Dir bringen wir unsere Verehrung dar
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| Ehre sei Dir, Herr
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| Du wohnst inne den Missgestalteten und allen anderen Gestalten
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| Dir bringen wir unsere Verehrung dar
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| Ehre sei Dir, Herr
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| Du wohnst inne den hervorragenden Persönlichkeiten und den weniger Ruhmreichen
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| Dir bringen wir unsere Verehrung dar
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| Ehre sei Dir, Herr
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| Du wohnst inne den Königen, die in Kutschen reisen und den Vornehmen, die keine Kutsche besitzen
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| Dir Herrn bringen wir unsere Verehrung dar
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| Ehre sei Dir, Herr
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| Du wohnst inne den Kutschen und den Besitzern der Kutschen
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| Dir bringen wir unsere Verehrung dar
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| Ehre sei Dir, Herr
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| Du wohnst inne den Heeren und den Heerführern
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| Dir bringen wir unsere Verehrung dar
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| Ehre sei Dir, Herr
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| Du wohnst inne denen die die Kutscher ausbilden und denen die die Zügel führen
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| Dir bringen wir unsere Verehrung dar
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| Ehre sei Dir, Herr
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| Du wohnst inne dem Zimmermann und dem Hersteller von Kutschen
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| Dir bringen wir unsere Verehrung dar
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| Ehre sei Dir, Herr
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| Du wohnst inne dem Töpfer und dem Hufschmied
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| Dir bringen wir unsere Verehrung dar
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| Ehre sei Dir, Herr
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| Du wohnst inne den Vogelfängern und den Fischern
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| Dir bringen wir unsere Verehrung dar
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| Ehre sei Dir, Herr
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| Du wohnst inne denen die Pfeile herstellen und denen die Bogen herstellen
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| Dir bringen wir unsere Verehrung dar
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| Ehre sei Dir, Herr
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| Du wohnst inne den Jägern die ohne [[Hund]]e jagen und den Jägern die mit Hunden jagen
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| Dir bringen wir unsere Verehrung dar
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| Ehre sei Dir, Herr
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| Du wohnst inne den Hunden und den Hundebesitzern
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| Dir bringen wir unsere Verehrung dar
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| ===Fünftes Anuvaka des Shri Rudram===
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| Ehre sei dem Herrn
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| Aus Ihm hat sich das Universum entfaltet und
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| Er nimmt das Leid
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| Ehre sei dem Herrn
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| Er ist der Zerstörer und
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| Er ist der Herr aller Wesen
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| Ehre sei dem Herrn
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| Er hat einen blauen Hals und
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| Er hat einen weißen Hals
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| Ehre sei dem Herrn
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| Er hat verfilztes Haar und
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| Er hat einen geschorenen [[Kopf]]
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| Ehre sei dem Herrn
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| Er hat unzählige Augen und
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| Er hat unzählige Waffen
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| Ehre sei dem Herrn
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| Er hat Seinen Wohnsitz in den Bergen und
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| Er durchdringt alles mit Seinen Strahlen
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| Ehre sei dem Herrn
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| Er ist der Urgrund des Universums und
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| Er hat einen Bogen
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| Ehre sei dem Herrn
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| Er ist klein und
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| Er hat kleine Füße
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| Ehre sei dem Herrn
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| Er ist groß und
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| Er hat viele Eigenschaften
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| Ehre sei dem Herrn
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| Er ist der Kosmos und
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| Er ist grenzenlos mit Lobgesängen zu erreichen
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| Ehre sei dem Herrn
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| Er ist der [[Urgrund]] allen Seins und
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| Er ist der Erste unter allen
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| Ehre sei dem Herrn
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| Er durchdringt alles und
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| Er bewegt alles
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| Ehre sei dem Herrn
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| |
| Er herrscht in den beweglichen Dingen und
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| Er herrscht im reißenden Fluss
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| Ehre sei dem Herrn
| |
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| Er herrscht in den Wogen und
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| Er herrscht in stillen Wassern
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| Ehre sei dem Herrn
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| Er herrscht in kleinen Bächen und
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| Er herrscht auf Inseln
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| ===Sechstes Anuvaka des Shri Rudram===
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| Ehre sei dem Herrn
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| Er ist der Alte und
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| Er ist der Junge
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| Ehre sei dem Herrn
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| Er ist die [[Ursache]] und
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| Er ist die [[Wirkung]]
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| Ehre sei dem Herrn
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| |
| Er ist die [[Jugend]] und
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| Er ist das [[Kind]]
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| Ehre sei dem Herrn
| |
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| |
| Er ist das Tier und
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| Er ist der Baum
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| |
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| |
| Ehre sei dem Herrn
| |
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| |
| Er ist der [[Mensch]] und
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| Er herrscht in der Welt der sich bewegenden [[Geschöpf]]e
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| Ehre sei dem Herrn
| |
|
| |
| Er ist im Reich der Toten und
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| Er herrscht im Himmelreich
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| |
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| |
| Ehre sei dem Herrn
| |
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| |
| Er durchdringt alles was auf Erden wächst und
| |
|
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| Er ist das Getreide
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| |
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| |
| Ehre sei dem Herrn
| |
|
| |
| Er herrscht in den Veden und
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| Er herrscht im Vedanta
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| Diesem Herrn bringen wir unsere Verehrung dar
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|
| |
| Ehre sei dem Herrn
| |
|
| |
| Er herrscht im Wald und
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|
| |
| Er herrscht im Baum
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| Ehre sei dem Herrn
| |
|
| |
| Er ist Klang und
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| Er ist Echo
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| Ehre sei dem Herrn
| |
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| |
| Er hat eine schnelles Heer und
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| Er hat eine schnelle Kutsche
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| Ehre sei dem Herrn
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| |
| Er ist ein mutiger Krieger und
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| Er zerschmettert die Burgen Seiner Feinde
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| |
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| Ehre sei dem Herrn
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|
| |
| Er hat die beste Rüstung und
| |
|
| |
| Er schützt den sicheren Platz des Kutschers
| |
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| |
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| |
| Ehre sei dem Herrn
| |
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| |
| Er hat einen Schutzhelm und
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|
| |
| Er hat Schutzkleidung
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| Ehre sei dem Herrn
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| Er ist berühmt durch die Veden und
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| Er wohnt inne den Himmlischen Heerscharen
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| ===Siebtes Anuvaka des Shri Rudram===
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| Ehre sei dem Herrn
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| Er herrscht in der Pauke und
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| Er herrscht im Trommelstock
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| Ehre sei dem Herrn
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| Er ist mutig und
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| Er ist vorausschauend
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| Ehre sei dem Herrn
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| Er ist ein Kurier und
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| Er ist am [[Wohlergehen]] des Königreichs interessiert
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| Ehre sei dem Herrn
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| Er hat ein Schwert in Seiner Hand und
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| Er hat einen Köcher mit Pfeilen an Seiner Schulter
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| Ehre sei dem Herrn
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| Er hat scharfe Pfeile und
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| Er ist mit allen Waffen ausgestattet
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| Ehre sei dem Herrn
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| Er hat schöne Waffen und
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| Er hat einen schönen Bogen
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| Ehre sei dem Herrn
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| Er herrscht auf engen Gehwegen und
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| Er herrscht auf hohen [[Weg]]en
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| Ehre sei dem Herrn
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| Er herrscht in Teichen und
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| Er herrscht in Wasserfällen
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| Ehre sei dem Herrn
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| Er herrscht im Moor und
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| Er herrscht im See
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| Ehre sei dem Herrn
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| Er herrscht im Fluss und
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| Er herrscht in kleinen Tümpeln
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| Ehre sei dem Herrn
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| Er herrscht im Brunnen und
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| Er herrscht im Tal
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| Ehre sei dem Herrn
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| Er herrscht in den Regenfällen und
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| Er herrscht in der Trockenzeit
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| Diesem Herrn bringen wir unsere Verehrung dar
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| Ehre sei dem Herrn
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| Er herrscht in den Wolken und
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| Er herrscht im Blitz
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| Ehre sei dem Herrn
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| Er herrscht in den Herbstwolken und
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| Er herrscht in der Sonne
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| Ehre sei dem Herrn
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| Er ist die Lebensenergie und
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| Er ist zornvoll
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| Ehre sei dem Herrn
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| Er belebt jedes Haus und
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| Er ist die Hausgottheit
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| ===Achtes Anuvaka des Shri Rudram===
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| Ehre sei dem Herrn
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| Er sitzt neben [[Uma]] und
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| Er ist Rudra der Herr
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| Ehre sei dem Herrn
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| Er ist die aufgehende Sonne und
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| Er ist die scheinende [[Sonne]]
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| Ehre sei dem Herrn
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| Er gibt Glück und
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| Er ist der Herr aller Geschöpfe
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| Ehre sei dem Herrn
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| Er ist unübertroffen in Seiner Herrlichkeit und
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| Er ist die Ursache von Angst
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| Ehre sei dem Herrn
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| Er beschützt uns von nah und
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| Er beschützt uns aus der Ferne
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| Ehre sei dem Herrn
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| Er nimmt das Universum in Sich auf
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| Er ist der Zerstörer des Geburtenkreislaufs
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| Ehre sei dem Herrn
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| Er ist in den Bäumen und
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| Er ist in den grünen Blättern
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| Ehre Ihm, der Omkara ist
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| Ehre sei dem Herrn
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| Er bringt jetzt Glück und
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| Er bringt später Glück
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| Ehre sei dem Herrn
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| Er ist die Quelle des [[Glücks]] und
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| Er gibt [[Freiheit]]
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| Ehre sei dem Herrn
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| Er ist der [[Gnade]]nvolle und
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| Er gewährt letztendliche [[Glückseligkeit]]
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| Ehre sei dem Herrn
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| Er herrscht auf heiligen Plätzen und
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| Er herrscht am Ufer des Flusses
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| Ehre sei dem Herrn
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| Er herrscht an der einen Seite des Flusses und
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| Er herrscht an der anderen Seite des Flusses
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| Ehre sei dem Herrn
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| Er hilft Verfehlungen zu überwinden und
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| Er hilft die Unwissenheit zu überwinden
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| Ehre sei dem Herrn
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| Er herrscht über die Wiedergeburt und
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| Er herrscht in den Seelen
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| Ehre sei dem Herrn
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| Er herrscht im weichen Gras und
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| Er herrscht im Schaum
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| Ehre sei dem Herrn
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| Er herrscht im Sand und
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| Er herrscht in der Strömung des Flusses
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| ===Neuntes Anuvaka des Shri Rudram===
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| Ehre sei dem Herrn
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| Er herrscht in der Wüste und
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| Er herrscht auf ausgetretenen Wegen
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| Ehre sei dem Herrn
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| Er ist in Schotterstraßen und
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| Er ist in Residenzen
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| Ehre sei dem Herrn
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| Er hat verfilztes Haar und
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| Er schützt von vorn
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| Ehre sei dem Herrn
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| Er herrscht im Kuhstall und
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| Er herrscht im Haus
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| Ehre sei dem Herrn
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| Er herrscht im Stall und
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| Er herrscht im Herrenhaus
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| Ehre sei dem Herrn
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| Er herrscht an schwierigen Stellen und
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| Er herrscht in Höhlen
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| Ehre sei dem Herrn
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| Er herrscht in tiefen Wassern und
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| Er herrscht in Tautropfen
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| Ehre sei dem Herrn
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| Er herrscht in unsichtbaren Teilchen und
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| Er herrscht im sichtbaren Staub
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| Ehre sei dem Herrn
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| Er herrscht im trockenen Holz und
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| Er herrscht in grünen Pflanzen und Bäumen
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| Ehre sei dem Herrn
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| Er herrscht an Stellen an denen nichts wächst und
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| Er herrscht im Moor
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| Ehre sei dem Herrn
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| Er ist die Erde und
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| Er ist die Woge
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| Ehre sei dem Herrn
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| Er herrscht im frischen Laub und
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| Er herrscht in einem Haufen trockenen Laubes
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| Ehre sei dem Herrn
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| Er hat die Waffe gezogen und
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| Er zerstört was zu zerstören ist
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| Ehre sei dem Herrn
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| Er gibt Erfolg in kleinen Schritten und
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| Er gibt Erfolg in großem Ausmaß
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| Ehre sei Dir
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| Der Du Dich in Deinen zornvollen Aspekten nur den Himmlischen offenbarst
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| Ehre sei dem Herrn
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| Der uns Heimsuchungen schickt
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| Der uns segnet und straft
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| Ehre sei dem Herrn
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| Der die Vergeltung der Taten vollzieht
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| Der überall das Böse bestraft
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| ===ZehntesAnuvaka des Shri Rudram===
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| Herr
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| Führe uns nicht in die Irre
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| Du bist der Herr der Nahrung
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| Du bist losgelöst von allem
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| Du zeigst Dich uns in den Farben des Himmels rot und blau
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| Mögest Du Mensch und Vieh nicht ängstigen
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| Lasse sie weder umkommen noch krank werden
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| Herr
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| Deine glückverheißende Form ist wie [[Medizin]] die alle Beschwerden heilt
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| Sie ist ein Segen für uns
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| Du bist der Arzt der die Leiden des Geburtenkreislaufs nimmt
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| Segne uns durch Deine friedvolle Erscheinung
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| Gib uns [[Wohlbefinden]] und [[Lebensenergie]]
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| Herr
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| Wir bringen unsere Verehrung Dir dar
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| Du bist allwissend, Du hast verfilztes Haar, Du schwächst die Feinde, Du gibst den Menschen, den Tieren und allen anderen Wesen unseres Dorfes Wohlbefinden. Du befreist uns von Krankheit und ernährst uns alle.
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| Herr
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| Segne uns mit letztendlicher Glückseligkeit. Wir bringen Dir unsere Verehrung dar, wir preisen Dich mit unserer Anbetung. Du kannst unsere Verfehlungen tilgen. Lass uns Glück in der materiellen Welt finden und führe uns – wie unseren Vorfahren Manu - zur Befreiung.
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| Herr
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| Töte nicht die Alten, töte nicht die Kinder, töte nicht die Jungen, töte nicht das Kind im Bauch der Mutter. Verletze nicht unseren Vater, verletze nicht unsere Mutter und verletze auch uns nicht
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| Herr
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| Trotz Deines [[Ärger]]s schade nicht unseren Nachkommen, unserem [[Leben]], dem Leben unseres Viehs und unserer Pferde. Töte nicht unsere tapferen Führer. Mit unserem Opfer in Händen verehren wir Dich.
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| Herr
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| Zornvoll tötest Du Kühe, Menschen, Söhne, Enkel und Krieger. Zeige Dich uns friedvoll und stehe uns bei. Sei uns wohlwollend und beschütze uns. Du gibst weltliches Glück und letztendliche Glückseligkeit. Gewähre uns beides.
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| Lobpreised den Herrn Der Sich in den Schriften offenbart, lobpreised den ewig jungen Herrn, der in unseren Herzen weilt, der die Missetäter vernichtet. Er ist furchterregend und unbezwingbar wie ein Löwe. Rudra wir preisen Dich. Segne uns mit Glück. Wir sind an diesen alternden Körper gebunden. Lasse Deine Heerscharen uns segnen und unsere Verfehlungen transformieren.
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| Herr
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| Halte Deine tödlichen Waffen und Deine zerstörerische Kraft von uns fern. Du erweist Deinen Gläubigen Wohltaten. Wir verehren Dich, ziele nicht mit Deinen unfehlbaren Waffen auf uns. Lass unsere Nachkommen glücklich sein.
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| Wunsch erfüllender Herr, mache unsere Herzen rein. Zeige Dich uns glückverheißend und wohlwollend. Nähere Dich uns ohne Deine furchterregenden Waffen. Nähere Dich uns mit Tigerfell bekleidet, den Stab in Deiner Hand.
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| Bezwinger, Makelloser, Herr, ausgestattet mit den sechs Formen der Fülle. Nimm unsere Verehrung an. Richte Deine Waffen nicht auf uns.
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| Du hältst unzählige Waffen in Deinen Händen, richte Sie nicht auf uns.
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| ===Elftes Anuvaka des Shri Rudram===
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| Unzählige Rudras mit unzähligen Bogen manifestieren sich in unzähligen Aspekten auf der Erde. Durch unseren Lobpreis bitten wir Sie die Sehnen Ihrer Bogen zu lösen und uns fern zu bleiben.
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| Durch unseren Lobpreis bitten wir die Rudras, die sich in der Weite des Ozeans und in den Zwischenreichen manifestieren, die Sehnen Ihrer Bogen zu lösen und uns fern zu bleiben.
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| Durch unseren Lobpreis bitten wir die Rudras mit blauem Hals, die Rudras mit weißem Hals und die Rudras die sich im Reich unter der Erde bewegen, die Sehnen Ihrer Bogen zu lösen und uns fern zu bleiben.
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| Durch unseren Lobpreis bitten wir die Rudras mit blauem Hals, die [[Rudras]] mit weißem Hals und die Rudras die sich im Himmel manifestieren, die Sehnen Ihrer Bogen zu lösen und uns fern zu bleiben.
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| Durch unseren Lobpreis bitten wir die Rudras, die sich in Bäumen aufhalten, die Rudras die die Farbe von frischem Gras haben, die Rudras die einen blauen Hals haben und die Rudras die von roter Farbe sind, die Sehnen Ihrer Bogen zu lösen und uns fern zu bleiben.
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| Durch unseren Lobpreis bitten wir die Rudras ohne Haar und die Rudras mit verfilztem Haar die Sehnen Ihrer Bogen zu lösen und uns fern zu bleiben.
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| Durch unseren Lobpreis bitten wir die Rudras, die durch Ihre Anwesenheit in der Nahrung und im Wasser den Menschen schaden, die Sehnen Ihrer Bogen zu lösen und uns fern zu bleiben.
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| Durch unseren Lobpreis bitten wir die Rudras, die Menschen auf ihren Wegen beschützen, die Rudras die uns mit Nahrung versorgen und die Rudras die gegen Missetäter kämpfen, die Sehnen Ihrer Bogen zu lösen und uns fern zu bleiben.
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| Durch unseren Lobpreis bitten wir die Rudras die sich mit scharfen Schwertern an Pilgerorten angesiedelt haben die Sehnen Ihrer Bogen zu lösen und uns fern zu bleiben.
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| All diese Rudras und viele mehr manifestieren sich. Sie dehnen sich in alle Richtungen aus. Durch unseren Lobpreis bitten wir Sie die Sehnen Ihrer Bogen zu lösen und uns fern zu bleiben.
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| Ehre den Rudras die uns durch Nahrung zu Schaden kommen lassen. Ehre den Rudras die uns durch Luft zu Schaden kommen lassen. Ehre den Rudras die uns durch Regen zu Schaden kommen lassen.
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| Wir verehren Sie indem wir uns hingebungsvoll gen Osten, Süden, Westen, Norden und nach oben wende.
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| Ehre sei den Rudras. Mögen Sie uns Glückseligkeit spenden.
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| Herr, wir übergeben Dir unser Leid, das von Missetaten herrührt.
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| Wir verehren den Dreiäugigen, Den Wohlduftenden, Der alle Lebewesen ernährt. Möge Er uns, so wie eine reife Gurke von der Pflanze abfällt, vom Tode befreien und zur Unsterblichkeit führen.
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| Ehre sei Rudra. Er ist im Feuer, in den Wassern, in den Pflanzen und in den Bäumen. Er ist der Urgrund des Universums.
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| Wir lobpreisen Rudra. Er hat himmlische Pfeile und einen Göttlichen Bogen. Durch Ihn wirken Medizin und Heilmittel.
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| Wir lobpreisen Rudra, den Strahlenden, den Allwissenden, dessen Odem alles erhält. Gebe Er uns einen klaren Geist und ein heiteres Gemüt.
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| Die Hand mit der wir das Opfer darbringen ist durch den Erhabenen gesegnet. Der Segen ist uns Medizin und Heilmittel.
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| Herr der Zeit und des Todes, nimm unsere hingebungsvollen Gebete und unsere guten Taten an. Wende Deine unzähligen Waffen, die Leid und Tod verursachen, von uns.
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| Dem Herrn des [[Tod]]es bringen wir unser Opfer dar.
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| Dem Herrn des Todes bringen wir unser Opfer dar.
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| Ehre sei Dir, Erhabener, Rudra.
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| Du Alldurchdringender, Du zerstörst das Leid des Kreislaufs der Geburten. Schütze uns von den Klauen des Todes.
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| Rudra, Herr, Du bist die Lebenskraft. Nimm in unseren [[Herz]]en Platz. Sei uns günstig gestimmt und gib uns [[Friede]]n.
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| <center>Om</center>
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| <center>Friede – Friede – Friede</center>
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| ==Siehe auch== | | ==Siehe auch== |