|
|
(2 dazwischenliegende Versionen desselben Benutzers werden nicht angezeigt) |
Zeile 1: |
Zeile 1: |
| '''Gim ([[IAST]]:- gīṃ; [[Devanagari]]:- गीं):''' Der Konsonant "[[ga]]" (ग) im [[Devanagari]]-Alphabet wird mit dem Vokal "[[i]]" und [[Anusvara]]-ṃ (d.h. [[IAST]] - īṃ; [[Devanagari]] - ईं) kombiniert, um Gim (gīṃ - गीं) zu bilden, ein [[Bija Mantra]], das sowohl mit [[Ganapati]] als auch mit [[Mahaganapati]], einer anderen Form von [[Ganesha]], verbunden ist. Dieses [[Bija Mantra]] erscheint im [[Ganapati Mala Mantra]] und auch in Kapitel 4 der [[Vallabhesha Upanishad]]. | | '''Gim ([[IAST]]:- gīṃ; [[Devanagari]]:- गीं):''' Der Konsonant "[[ga]]" (ग) im [[Devanagari]]-Alphabet wird mit dem Vokal "[[i]]" und [[Anusvara]]-ṃ (d.h. [[IAST]] - īṃ; [[Devanagari]] - ईं) kombiniert, um Gim (gīṃ - गीं) zu bilden, ein [[Bija Mantra]], das sowohl mit [[Ganapati]] als auch mit [[Mahaganapati]], einer anderen Form von [[Ganesha]], verbunden ist. Dieses [[Bija Mantra]] erscheint im [[Ganapati Mala Mantra]] und auch in Kapitel 4 der [[Vallabhesha Upanishad]]. |
|
| |
| <br/> <br/>
| |
|
| |
| तत्त्वबोधः
| |
|
| |
| श्रीशङ्करभगवत्पादाचार्यप्रणीतः
| |
| INVOCATION
| |
| वासुदेवेन्द्रयोगीन्द्रं नत्वा ज्ञानप्रदं गुरुम् ।
| |
| मुमुक्षूणां हितार्थाय तत्त्वबोधोभिधीयते ॥<br/> <br/>
| |
|
| |
|
| |
| साधनचतुष्टयसम्पन्नाधिकारिणां मोक्षसाधनभूतं
| |
| तत्त्वविवेकप्रकारं वक्ष्यामः ।
| |
| १ SADHANA CHATUSHTAYA (The four-fold qualifications)
| |
| साधनचतुष्टयं किम् ?
| |
| नित्यानित्यवस्तुविवेकः ।
| |
| इहामुत्रार्थफलभोगविरागः ।
| |
| शमादिषट्कसम्पत्तिः ।
| |
| मुमुक्षुत्वं चेति ।
| |
| १.१ VIVEKA (Discrimination)
| |
| नित्यानित्यवस्तुविवेकः कः ?
| |
| नित्यवस्त्वेकं ब्रह्म तद्व्यतिरिक्तं सर्वमनित्यम् ।
| |
| अयमेव नित्यानित्यवस्तुविवेकः ।
| |
| १.२ VAIRAGYA (Dispassion)
| |
| विरागः कः ?
| |
| इहस्वर्गभोगेषु इच्छाराहित्यम् ।
| |
| १.३ SHATKA SAMPATTI
| |
| शमादिसाधनसम्पत्तिः का ?
| |
| शमो दम उपरमस्तितिक्षा श्रद्धा समाधानं च इति ।
| |
| १.३.१ SAMA
| |
| शमः कः ?
| |
| मनोनिग्रहः ।
| |
| १.३.२ DAMA
| |
| दमः कः ?
| |
| चक्षुरादिबाह्येन्द्रियनिग्रहः ।
| |
| १.३.३ UPARAMA OR UPARATI
| |
| उपरमः कः ?
| |
| स्वधर्मानुष्ठानमेव ।
| |
| १.३.४ TITIKSHA
| |
| तितिक्षा का ?
| |
| शीतोष्णसुखदुःखादिसहिष्णुत्वम् ।
| |
| १.३.५ SHRADDHA
| |
| श्रद्धा कीदृशी ?
| |
| गुरुवेदान्तवाक्यादिषु विश्वासः श्रद्धा ।
| |
| १.३.६ SAMADHANA
| |
| समाधानं किम् ?
| |
| चित्तैकाग्रता ।
| |
| १.४ MUMUKSHUTVAM
| |
| मुमुक्षुत्वं किम् ?
| |
| मोक्षो मे भूयाद् इति इच्छा ।
| |
| एतत् साधनचतुष्टयम् ।
| |
| ततस्तत्त्वविवेकस्याधिकारिणो भवन्ति ।<br/> <br/>
| |
|
| |
| २ TATTVA VIVEKA (Enquiry into Truth)
| |
| तत्त्वविवेकः कः ?
| |
| आत्मा सत्यं तदन्यत् सर्वं मिथ्येति ।
| |
| आत्मा कः ?
| |
| स्थूलसूक्ष्मकारणशरीराद्व्यतिरिक्तः पञ्चकोशातीतः सन्
| |
| अवस्थात्रयसाक्षी सच्चिदानन्दस्वरूपः सन्
| |
| यस्तिष्ठति स आत्मा ।
| |
| २.१ THE FIVE SHEATHS (Pancha Kosa)
| |
| २.२ SHARIRA TRAYA (The Three Bodies)
| |
| २.३ AVASTHA TRAYA (The Three States)
| |
| २.४ SATCHIDANANDA SVARUPA (Existence-Knowledge-Bliss) <br/> <br/>
| |
|
| |
| ३ STHULA-SUKSHMA-KARANA SHARIRAS (Sharira-Traya)
| |
| ३.१ STHULA SHARIRA
| |
| स्थूलशरीरं किम् ?
| |
| पञ्चीकृतपञ्चमहाभूतैः कृतं सत्कर्मजन्यं
| |
| सुखदुःखादिभोगायतनं शरीरम्
| |
| अस्ति जायते वर्धते विपरिणमते अपक्षीयते विनश्यतीति
| |
| षड्विकारवदेतत्स्थूलशरीरम् ।
| |
| ३.२ SUKSHMA SHARIRA
| |
| सूक्ष्मशरीरं किम् ?
| |
| अपञ्चीकृतपञ्चमहाभूतैः कृतं सत्कर्मजन्यं
| |
| सुखदुःखादिभोगसाधनं
| |
| पञ्चज्ञानेन्द्रियाणि पञ्चकर्मेन्द्रियाणि पञ्चप्राणादयः
| |
| मनश्चैकं बुद्धिश्चैका
| |
| एवं सप्तदशाकलाभिः सह यत्तिष्ठति तत्सूक्ष्मशरीरम् ।
| |
| ३.२.१ ~nANA INDRIYAS (Organs of Perception)
| |
| श्रोत्रं त्वक् चक्षुः रसना घ्राणम् इति पञ्च ज्ञानेन्द्रियाणि ।
| |
| श्रोत्रस्य दिग्देवता ।
| |
| त्वचो वायुः ।
| |
| चक्षुषः सूर्यः ।
| |
| रसनाया वरुणः ।
| |
| घ्राणस्य अश्विनौ ।
| |
| इति ज्ञानेन्द्रियदेवताः ।
| |
| श्रोत्रस्य विषयः शब्दग्रहणम् ।
| |
| त्वचो विषयः स्पर्शग्रहणम् ।
| |
| चक्षुषो विषयः रूपग्रहणम् ।
| |
| रसनाया विषयः रसग्रहणम् ।
| |
| घ्राणस्य विषयः गन्धग्रहणम् इति ।
| |
| ३.२.२ KARMA INDRIYAS (Organs of Action)
| |
| वाक्पाणिपादपायूपस्थानीति पञ्चकर्मेन्द्रियाणि ।
| |
| वाचो देवता वह्निः ।
| |
| हस्तयोरिन्द्रः ।
| |
| पादयोर्विष्णुः ।
| |
| पायोर्मृत्युः ।
| |
| उपस्थस्य प्रजापतिः ।
| |
| इति कर्मेन्द्रियदेवताः ।
| |
| वाचो विषयः भाषणम् ।
| |
| पाण्योर्विषयः वस्तुग्रहणम् ।
| |
| पादयोर्विषयः गमनम् ।
| |
| पायोर्विषयः मलत्यागः ।
| |
| उपस्थस्य विषयः आनन्द इति ।
| |
| ३.३ KARANA SHARIRA
| |
| कारणशरीरं किम् ?
| |
| अनिर्वाच्यानाद्यविद्यारूपं शरीरद्वयस्य कारणमात्रं
| |
| सत्स्वरूपाऽज्ञानं निर्विकल्पकरूपं यदस्ति तत्कारणशरीरम् ।<br/> <br/>
| |
|
| |
| ४ AVASTHA TRAYA (The Three States)
| |
| अवस्थात्रयं किम् ?
| |
| जाग्रत्स्वप्नसुषुप्त्यवस्थाः ।
| |
| ४.१ JAGRAT AVASTHAA (Waking State)
| |
| जाग्रदवस्था का ?
| |
| श्रोत्रादिज्ञानेन्द्रियैः शब्दादिविषयैश्च ज्ञायते इति यत्
| |
| सा जाग्रदावस्था ।
| |
| स्थूल शरीराभिमानी आत्मा विश्व इत्युच्यते ।
| |
| ४.२ SVAPNA AVASTHA (Dream State)
| |
| स्वप्नावस्था केति चेत् ?
| |
| जाग्रदवस्थायां यद्दृष्टं यद् श्रुतम्
| |
| तज्जनितवासनया निद्रासमये यः प्रपञ्चः प्रतीयते सा
| |
| स्वप्नावस्था ।
| |
| सूक्ष्मशरीराभिमानी आत्मा तैजस इत्युच्यते ।
| |
| ४.३ SUSHUPTI AVASTHA (Deep-sleep State)
| |
| अतः सुषुप्त्यवस्था का ?
| |
| अहं किमपि न जानामि सुखेन मया निद्राऽनुभूयत इति
| |
| सुषुप्त्यवस्था ।
| |
| कारणशरीराभिमानी आत्मा प्राज्ञ इत्युच्यते ।<br/> <br/>
| |
|
| |
| ५ PANCHA KOSHAS
| |
| पञ्च कोशाः के ?
| |
| अन्नमयः प्राणमयः मनोमयः विज्ञानमयः आनन्दमयश्चेति ।
| |
| ५.१ ANNAMAYA KOSHA (Food Sheath)
| |
| अन्नमयः कः ?
| |
| अन्नरसेनैव भूत्वा अन्नरसेनैव वृद्धिं प्राप्य अन्नरूपपृथिव्यां
| |
| यद्विलीयते तदन्नमयः कोशः स्थूलशरीरम् ।
| |
| ५.२ PRANAMAYA KOSHA (Vital Air Sheath)
| |
| प्राणमयः कः ?
| |
| प्राणाद्याः पञ्चवायवः वागादीन्द्रियपञ्चकं प्राणमयः कोशः ।
| |
| ५.३ MANOMAYA KOSHA (Mental Sheath)
| |
| मनोमयः कोशः कः ?
| |
| मनश्च ज्ञानेन्द्रियपञ्चकं मिलित्वा यो भवति स मनोमयः कोशः ।
| |
| ५.४ VI~nANAMAYA KOSHA (Intellectual Sheath)
| |
| विज्ञानमयः कः ?
| |
| बुद्धिज्ञानेन्द्रियपञ्चकं मिलित्वा यो भवति स विज्ञानमयः कोशः ।
| |
| ५.५ ANANDAMAYA KOSHA (Bliss Sheath)
| |
| आनन्दमयः कः ?
| |
| एवमेव कारणशरीरभूताविद्यास्थमलिनसत्त्वं
| |
| प्रियादिवृत्तिसहितं सत् आनन्दमयः कोशः ।
| |
| एतत्कोशपञ्चकम् ।
| |
| ५.६ PANCHAKOSHATITA
| |
| मदीयं शरीरं मदीयाः प्राणाः मदीयं मनश्च
| |
| मदीया बुद्धिर्मदीयं अज्ञानमिति स्वेनैव ज्ञायते
| |
| तद्यथा मदीयत्वेन ज्ञातं कटककुण्डल गृहादिकं
| |
| स्वस्माद्भिन्नं तथा पञ्चकोशादिकं स्वस्माद्भिन्नम्
| |
| मदीयत्वेन ज्ञातमात्मा न भवति ॥<br/> <br/>
| |
|
| |
|
| |
|
| ==Siehe auch== | | ==Siehe auch== |